tag:blogger.com,1999:blog-54316235878612311732023-11-15T08:13:08.111-08:00 अनुगूँज स्वयं की तलाश में ....चरैवती, चरैवती.... Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.comBlogger19125tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-64476043135735802652018-01-02T08:41:00.000-08:002018-01-02T08:41:00.195-08:00मुस्कान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
विदा होकर डरी-सहमी सी वह सकुचाती लजाती हुई ससुराल के आंगन में कदम रख चुकी थी। भव्यता के साथ स्वागत हुआ नई बहु का। नई-नवेली दुल्हन को ले जाकर एक बड़े से कमरे में बैठा दिया गया। घर की सारी औरतें उसे घेरे बैठी थी। मुंहदिखाई की रस्म के साथ-साथ जान-पहचान भी हो रही थी। सहमी सी वह गठरी बनी बैठी थी। वहीं कोने में दुल्हन की बूढ़ी ननियासास जो आगे से थोड़ी झुक गयी थी, बैठी बड़े गौर से दुल्हन को निहारे जा रही थी। उन्हें थोड़ा कम दिखाई देता था। बगल में ही बैठी मामीजी की नजर उन पर पड़ी तो चुटकी लेती हुई बोली, "का बात है अम्मा, ऐसे टुकुर-टुकुर का देखत हो बहुरिया के?"<br /> नानीजी ने भी बड़ी शरारत भरे अंदाज में जवाब दिया, "देखत हिये कि ऐसन का है इ बहुरिया में जेके खातिर हमार नातिन हमका के छोड़ ऐकला बियाह लायील। सौत कहीं की..। सौत शब्द पर उन्होंने बिना दांतों वाले मुंह से ऐसा मुंह बनाया कि पूरा कमरा ठहाकों से गूंज गया और गठरी बनी दुल्हन शर्म से पानी-पानी हो गई।उसके मन का डर अब हल्की मुस्कान बन चुकी थी।<br />
---- वंदना रानी </div>
Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-67243497833274745982018-01-02T08:28:00.000-08:002018-01-02T08:29:58.963-08:00उसने कहा था <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
<br /></div>
<div>
राजीव चौक में हुडा सिटी सेंटर जाने वाली मेट्रो में अचानक सालों बाद निशि मिली, बिल्कुल आमने सामने। सार्थक को निशि को पहचानने में पल भर भी न लगे। निशि, सार्थक का पहला व अंतिम प्यार जिसे वह कई सालों से ढूंढ रहा था, उसके सामने थी। सार्थक ने उसे टोकना चाहा ही कि उसे निशि से अंतिम मुलाकात याद आयी और उसका भयभीत चेहरा भी। "सार्थक यदि हमने एक क्षण भी सच्ची मुहब्बत की हो तो मुझसे कभी मिलने की कोशिश न करना,कभी बात मत करना।" सार्थक उस क्षण में बंध कर रह गया। निशि केंद्रीय सचिवालय उतर गई। </div>
<b></b><i></i><u></u><sub></sub><sup></sup><strike></strike><br /></div>
Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-60978300862963437742014-04-04T20:41:00.000-07:002014-04-04T20:41:02.693-07:00माँ का घर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: justify;">
अशोक बाबू बड़े उत्साह से आये मेहमानों को अपना नया घर दिखा रहे थे । इस घर में तीन बेड रूम है । यह मेरा बेडरूम है, ये बेटे किसू का स्टडी रूम और बगल में उसके लिए एक सेप्रेट बेड रूम । बेटी के लिए भी यही अरेंजमेंट है । यह बड़ा सा हाल इसलिए बनवाया है कि घरेलू पार्टियां आराम से हो सके । पीछे साइड से सर्वेंट्स रूम है और एक स्विमिंग पूल निर्माणाधीन है ।अकस्मात् एक मेहमान ने पूछा, "और माँ का कमरा कौन सा है ?" अशोक बाबू इस अनचाहे प्रश्न से भौचंक रह गये । लड़खड़ाते हुए जवाब दिया , "पूरा घर तो माँ का ही है।" बरामदे के एक कोने में चौकी पर पड़ी माँ के चेहरे पर निरीहता उभरी । फिर किसी ने न कुछ पूछा और ना ही किसी ने कोई जवाब दिया । </div>
</div>
Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-78261146759495169892014-02-07T22:08:00.001-08:002014-02-08T03:08:53.634-08:00दकियानूसी <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<br />
<div style="text-align: justify;">
पार्क के कोने में अपने प्रेमी संग बैठी हनी ने उसके डिमांड को मानने से इंकार कर दिया था | लड़का उसे समझाने की कोशिश कर रहा था, " तुम भी न बेहद दकियानूसी हो , केवल दिखती मॉडर्न हो | पुरानी सदियों में यह एक गुनाह समझा जाता था | अब तो सब चलता है |" अभी वह उसे कन्विंस करने की कोशिश कर ही रहा था कि उसे बगल के झाड़ी से कुछ जानी- पहचानी आवाज सुनाई दी | उसे लगा कि यह आवाज तो छवि की है | आश्वस्त होने के लिए उसने झांककर देखा तो उसके होश फाख्ता हो गये | वह छवि ही थी , उसकी बहन , अपने प्रेमी के संग बैठी हुई | " छि: छवि भी ऐसी हो सकती है ! क्या उसे कुल -परिवार के मान मर्यादा का, प्रतिष्ठा ,नैतिकता का तनिक भी लिहाज नहीं है | " उसके आँखों में लहू उतर आया | उसने उन दोनों पर हमला बोल दिया | बहन को कुलटा, कुल कलंकिनी और न जाने क्या -क्या गलियां दी | उसके प्रेमी को फिर देख लेने की धमकी दी | और बहन को घसीसटते हुए वह पार्क से चला गया | हनी अचंभित उसे जाते देखती रही | </div>
</div>
Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-3177394584533819722014-01-31T19:21:00.000-08:002014-02-02T02:34:27.578-08:00ट्रैफिक सिग्नल <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #fff font-family: lucida grande, tahoma, verdana, arial, sans-serif;"><span 17.940000534057617px="" line-height:="">सिग्नल ने रंग बदला और लाल हो गया | उसके सामने भागती-दौड़ती गाड़ियाँ एक-एक कर रूकती चली गयी | गाड़ियों के रुकते ही फेरीवालों का झुंड सलामती, दुआ के ओफर के साथ किस्म किस्म के सामान बेचने की जुगत में गाड़ियों के पास भिनभिनाने लगे | इसी रेलपेल में एक तेरह-चौदह साल की लड़की एक कार वाले साहब से गुलदस्ता ले लेने की मिन्नत कर रही थी | उस कार वाले साहब ने एक नजर उस लड़की पर डाली | मन में कई भावों ने रंग बदले | उसने एक गुलदस्ता खरीद लिया | लड़की पैसे लेने लिए जैसे थोड़ी झुकी कि उसने लपककर उसके छोटी, उभरती छाती को दबा दिया | लड़की अचकचाकर पीछे हट गयी | सिग्नल ने फिर रंग बदला | वह हरा हो गया | साहब मुस्कुराते , हॉर्न बजाते हुए आगे बढ़ गये , कुछ अपने साथ घसीटते हुए, कुछ वहीँ छोड़कर ...........|</span></span></div>
</div>
<span style="color: #fff font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17.940000534057617px;"><br />
</span> <span style="color: #fff font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17.940000534057617px;"><br />
</span> <span style="color: #fff font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17.940000534057617px;"><br />
</span> </div>
Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-33903226615049719272013-12-08T11:36:00.000-08:002013-12-08T12:18:32.443-08:00आम आदमी पार्टी का उदय : राजनीति में नये युग का आगाज <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
लोकतंत्र की असली शक्ति 'जनादेश' है | एक लोक प्रसिद्ध जुमला है कि 'जनता है सब जानती है' | जनता सब समझती है और माकूल समय आने पर सत्ता को अपनी हैसियत भी समझा देती है | दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम में यह चरितार्थ होता दिखा है | दिल्ली विधानसभा का चुनाव परिणाम सबसे दिलचस्प और चौंकाने वाला आया है | यहाँ सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी बुरी तरह चुनाव हारी है तो भाजपा बस ललचती ही रह गयी | सबसे बड़ा और अप्रत्याशित फायदा नयी पार्टी 'आम आदमी पार्टी' को मिला है | उसे आम आदमी का अपार जनसमर्थन मिला और वह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है | आम आदमी पार्टी की जीत कई मायने में खास और शोध का विषय बन गयी है | सबसे बड़ी बात यह है कि क्योंकर जनता ने फकत ग्यारह माह पुरानी पार्टी को भाजपा और कांग्रेस पर तरजीह दी | आम आदमी पार्टी (आप) का उभार इस बात का स्पष्ट संकेत है कि लोग मुख्य पार्टियों के राजनीति से तंग आ चुके हैं और विकल्प दूंढ रहे हैं | जनता राजनीति में भ्रष्टाचार के गजालत से उब चुकी है | राजनीति आम जन की नज़रों में कुटिलता का पर्याय बन गया है | अक्सर किसी के कुटिल व्यवहार या फूट डालने की प्रवृति की यह कहकर निंदा की जाती है कि राजनीति मत करो | यह कितनी दुखद बात है कि जो नीति देश के विकास और स्थिरता के लिये सबसे जरूरी है उसी के बारे में आम लोगों की ऐसी राय बन गयी है |<br />
आप ने राजनीति में प्रवेश इसी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर किया | महंगाई , भ्रष्टाचार , राजनेताओं के अहंभाव से जनता बेचैन थी और विकल्प के तलाश में थी | इसी निराशा और कुंठा के माहौल में अरविन्द केजरीवाल और आप एक उम्मीद बन कर उभरे | उसे एक नया नायक मिला जो केवल राजनीति की गंदगी की बात नहीं करता था बल्कि झाड़ू लेकर उसे साफ़ करने के लिए उतर भी गया | उसके इस हौंसले से जनता का हौंसला बढ़ा | कांग्रेस और भाजपा पहले ही अपना भरोसा खो चुके थे | आप के रूप में विकल्प नया तो था लेकिन ईमानदारी और उत्साह से लबरेज था | उसका यह उत्साह और दीवानगी सभी तबके के लोगों को छू गयी | दोनों बड़ी पार्टियाँ अपने -अपने फैक्टर की बात करते रहे और जनता ने अपना मन बना लिया कि उसे इस बार किसे चुनना है | यहाँ न 'मोदी फैक्टर ' प्रभावी हुआ और न 'राहुल का जादू ' चला | जनता ने बता दिया कि वे किसी लहर पर सवार हो कर नही अपितु काम-काज के आधार पर अपना प्रतिनिधि चुनती है | व्यक्ति विशेष की बात करने वाली पार्टियों के लिये यह एक सन्देश है कि वे किसी मुगालते में न रहे हैं कि कोई आएगा औए जनता सम्मोहित हो जाएगी |<br />
हर आकलन को झुठलाते हुए जनता ने भ्रष्टाचार को 'न' कह दिया है | हालाँकि आम आदमी पार्टी बहुमत से दूर रह गयी और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है | फिर भी जिस तरह से 'आप' को जनता का समर्थन मिला है , वह राजनीति में एक नए युग का आगाज है | जनता ने एक बार भी साबित कर दिया है कि वोट केवल काम के आधार पर मिलता है , ताम-झाम के आधार पर नहीं | आने वाले समय में आम आदमी पार्टी के उदय की अनुगूँज केवल दिल्ली तक ही नही रहेगी , समूचे देश में गूंजेगी | </div>
Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-7753491184340323172013-12-05T03:14:00.002-08:002014-02-01T21:37:24.950-08:00 दस पैसा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<form action="https://www.facebook.com/ajax/ufi/modify.php" class="live_637810859611581_316526391751760 commentable_item collapsed_comments autoexpand_mode" data-live="{"seq":0}" id="u_4c_4" method="post" rel="async" style="-webkit-text-stroke-width: 0px; background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: 14px; margin: 0px; orphans: auto; padding: 0px; text-align: left; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: auto; word-spacing: 0px;"></form><span style="color: White; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.38;">उसे पुराने सिक्के जमा करने का शौक था | आज वह पुराने सिक्कों को निकाल कर देख रहा था | एक दस पैसे का सिक्का पिछलकर नीचे कहीं गिर गया | काफी मशक्कत के बाद उसे वह सिक्का टेबल के नीचे मुस्कराता मिला | सिक्के को हाथ में लेते ही विस्मृत स्मृति ने उसे घेर लिया |</span><br />
<div class="mbs _5pbx userContent" data-ft="{"tn":"K"}" style="-webkit-text-stroke-width: 0px; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 16px; font-style: 16px; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: 1.38; margin-bottom: 5px; orphans: auto; text-align: left; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: auto; word-spacing: 0px;"><div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_52a05f77cf84c3051566701" style="display: inline;">"माँ , दस पैसे दो ना, लट्ठा खाना है |"<br />
माँ ने पैसे न देकर उसे किसी और बहाने से बहलाने की कोशिश की |<span class="text_exposed_show" style="display: inline;"><br />
"नहीं, मुझे पैसे दो ना " | वह माँ का आँचल पकड़कर जोर -जोर से रोने लगा |<br />
माँ का कलेजा भर आया | बोली, "ठहर मैं अभी आती हूँ |" इतना कहकर वह पडोसी के घर गयी | लौटकर उसने उसे दस पैसे का सिक्का दिया | वह खिलखिलाता हुआ लट्ठा खाने भाग पड़ा |<br />
आज हाथ में दस पैसे का सिक्का लिए उसे उस दस पैसे की याद आयी | माँ का दुखी चेहरा याद आया | माँ ने उसके लट्ठा के लिए पड़ोसी से पैसे मांगे थे |<br />
उसे देश छोड़े , माँ से बिछुड़े दस साल हो गए थे | उसने माँ को फ़ोन किया, " माँ , मैं तुम्हारे पास आ रहा हूँ |"</span></div></div></div>Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-65020345902485290872013-11-28T06:18:00.000-08:002014-02-02T02:51:42.114-08:00हाट में खड़ा मैं <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span style="color: White; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.38;"><br />
आज हाट में खड़ा हुआ हूँ <br />
मैं मेरे परिजन<br />
मोलजोल कर रहे हैं मेरा<br />
आये ग्राहक के संग |<br />
रेट तो पता ही है सबको<br />
आएइअस 1 करोड़ , पीओ की है 20 लाख '|<br />
हम आपसे ज्यादा कहाँ मांग रहे हैं <br />
और हाँ "सौदा" हो मनभावन<br />
गोरी, लंबी, छरहरी और<br />
संस्कारी सीता की तरह |<br />
उपजाऊ भी हो ताकि जन सके 'कुलदीपक' |<br />
जवाब में,<br />
वे बता रहे हैं अपने 'सामान' का<br />
रंग-रूप , तौर , शहूर |<br />
मैं चुप हूँ , क्योंकि मुझे समझाया गया है<br />
कि ऐसे मामलों में संस्कारी लड़के कुछ नहीं बोलते |<br />
मैं देख रहा हूँ ,<br />
मैं बेचा जा रहा हूँ ,<br />
अपनों के अहसान में जकड़ा 'बुत' खड़ा हूँ |<br />
आज क्यों मेरे स्वर मूक हो गये हैं ?<br />
पताका उठाने को तत्पर हाथ कैसे लोथ हो गए हैं ?<br />
क्या उलझन ? , कैसा द्वन्द है ?<br />
क्यों इतना बेबस खड़ा हूँ मैं ?</span></div>Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-7855690217830792202013-04-27T05:57:00.002-07:002013-04-27T06:10:39.246-07:00 हमें सुधरना होगा दामिनी और गुडिया, तुम्हे बचाने के लिए<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: left;">
</div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">पांच वर्षीया गुड़िया
के साथ हुए दरिंदगी से समूचा देश-समाज स्तब्ध है | चहुँओंर जुगुप्सा कहकहे लगा रही
है | मानवता शर्मशार है | इस जघन्य अपराध के प्रतिकार में जन हुजूम सड़कों पर उमड़
पड़ा है , ठीक वैसे ही जैसे दिसम्बर में दामिनी के साथ हुए हादसे के बाद एकजुट खड़ा
हुआ था | विशाल जनाक्रोश को देखकर तसल्ली होती है कि दरिंदगी के अनवरत वज्राघात के
बावजूद संवेदनशीलता के कोपंल पूरी तरह कुचल नही पाए हैं | वे इंसानियत के बगिये
में बहुत हद तक मह्फूज हैं | हाँ, पारस्परिक विश्वास के वितान में सिकुरन अवश्य
आयी है |</span><span style="font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> इस
विषय पर विमर्श करते हुए इस बिन्दू पर गौर करने की जरूरत है कि क्या सड़कों पर उतरे
पुरुष सचमुच अपने सारे पूर्वाग्रहों को छोड़कर नारी का हित चाहने लगे हैं या इस
वीभत्स कृत्य से बौखलाकर, आवेश में सड़कों पर उतर आये हैं? वे क्या चाहते हैं कि
महिलाओं के साथ रेप न हो या किसी भी प्रकार की प्रताडना न हो ? चूंकि बलात्कार
समाज के परम्परा या व्यवस्था में अनुचित है इसलिए विरोध हो रहा है या पुरुष सच में
परम्परा व व्यवस्था में बदलाव के लिये आगे आ रहे हैं | गौरतलब है कि समाज में कई
ऐसे तरीके या व्यवस्था हैं जो नारी गरिमा के अनुकूल नहीं है | चूंकि वे पुरुषों के
प्रभुत्व के लिए जरूरी है इसलिए उसमे बदलाव की बात नहीं होती है | सदियों से सताई
नारी , धर्म की घुंटी पी-पी कर बड़ी हुई नारी इसे अपनी नियति मानकर जहालत में जीने
के लिये अभिशप्त रही है |शिक्षा के प्रसार और युगीन बदलाव के कारण नारी भी अपने अस्तित्व
का महत्व समझने लगी है | और धीमे-धीमे ही सही बदलाव के फुहार होने लगे हैं | फिर
भी समाज की कुछ विसंगतियाँ ऐसी हैं जो परम्परा के नाम पर बदस्तूर जारी हैं और हम
उसे परम्परा और व्यवस्था के नाम पर खींच रहें हैं |</span><span style="font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">यह विडम्बना ही है
की नारी स्वातंत्र्य और सामूहिक चेतना के बारम्बार आह्वान के बावजूद भारत के मध्य
वर्ग (विशेषतया निम्न मध्यवर्ग ) के महिलाओं की स्थिति जस की तस है |अमूनन आज भी
उनके प्रति जिम्मेवारी शादी कर देने तक समझी जाती है | लड़कियों के रंग-रूप ,
प्रतिभा का उपयोग इतना ही है कि उनकी शादी अच्छे घरों में हो जाये | समाज में शादी
के लिये लड़के वालों की डिमांड गोरा रंग , छ्हररा बदन और दहेज़ के रूप में मोटी रकम
होती है | लड़की के अन्य गुण गौण होते हैं | गौर करें तो यहाँ लड़की के प्रति एक लड़के
वाले की सोच क्या होती है ? क्या वहां केवल भोग की लिप्सा प्रच्छन नहीं ? यह
प्रच्छ्नता व्यवस्था के नाम पर है और बलात्कार में लिप्सा हैवानियत के नाम पर |
इसलिए मानसिकता में बदलाव दोनों ही जगह अपेक्षित है | शादी के लिये लड़की को जांचा –परखा जाता है | ये परखना
बस वैसे ही होता है जैसे कोई ग्राहक ‘माल’ खरीदने से पहले मौल –तौल करता है और
लड़की वाले दूकानदार के मानिंद ‘सामान’ की क्वाय्लिटी बताते जाते हैं | एक साथ कई
आँखे लड़की के अंग –अंग को भेदती जाती है | सोच कर ही रोहं सिहर जाता है कि लड़की
किस बदहवासी से गुजरती है | फिर भी हमें फर्क नही पड़ता क्योंकि हम ऐसा देखते आयें
हैं और सिस्टम मान बैठे हैं | आज कोई मेरी बहन के साथ ऐसा कर रहा है , कल हम किसी
की बहन के साथ ऐसा करेंगे | परन्तु उस समय हम ये भूल जाते हैं कि बहन किसी की हो ,
अपमान हमेशा एक नारी का ही होता है |</span><span style="font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> गोराई
के प्रति पूर्वाग्रह तो देखते ही बनता है
| गोरा रंग सुन्दरता और अभिजात्य होने का प्रतीक बन गया है | गोरी चमड़ी के प्रति
हमारा मोह किस मानसिकता को दर्शाता है ? बात तो तब और भी वीभत्स लगती है जब लोग
अपने कुतर्कों से इसे ‘पसंद की अभिव्यक्ति’ बताने लगते हैं| </span><span style="font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">इसके अलावे दहेज़ ने
तो समाज में दहशत फैला रखी है | अच्छा पैसा गठरी में है तो अच्छा लड़का मिल जायेगा
अन्यथा लड़की घर बैठे बुडी हो जाएगी | शादी में अच्छा लड़का का मतलब घर-बार , नौकरी
वाला समझा जाता है | मार्किट में हर लड़का का रेट तय है | शादी भी तरक-भरक वाली
होनी चाहिए और वो भी लड़की वालों के खर्च पर | कारण यह है कि ऐसी शादी से सामाजिक
प्रतिष्ठा बढती है | फलां बाबू के बेटे की शादी में बनारस की लोंडिया नाची थी ? ये
लोंडिया कौन है ? इसे किसने पैदा किया ? इन सवालों को लेकर कोई उबाल नही आता , कोई
बवाल नहीं मचता | क्योंकि ऐसी व्यवस्था पुरुष प्रभुत्व समाज के गलीज मानसिकता को
तुष्ट करते हैं |</span><span style="font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">पूंजीवाद ने माहौल
को जहरीला बनाने में कोई कसर नही छोड़ी है | इसने हर समाज –परिवार के ताने बाने को
नष्ट किया है | जीवन का उद्देश्य कंचन, कामिनी और सुरा रह गया है | पूंजीवाद ने चारों
और एक महीन मायाजाल बुना है | जिसमे सबसे ज्यादा महिलाएं ही फंसी है | नारी
स्वांत्र्य के नाम पर उन्हें प्रोडक्ट बनाकर बेचा गया है | पूरी की पूरी जिन्दगी
‘टारगेट –टारगेट और टारगेट’ में समा गया है | नतीजतन अवसाद, निराशा, कुंठा चारो और
घर कर गयी है | जिसका दुष्परिणाम कई तरह से सामने आ रहा है |</span><span style="font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"> भारतीय समाज कई अंतर्विरोधों से
गुजर रहा है |सामंती हेठी अभी पूरी तरह गयी नहीं है और महिलाओं का अपनी सीमाओं का
तोडना उसे रास नही आ रहा है | इसलिए
महिलाओं के प्रति अत्याचार बडे हैं | यहाँ तक की बच्चियां भी सुरक्षित नहीं हैं |</span><span style="font-size: 14.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
<div class="MsoNormal">
<span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 14.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;">ऐसे ही सरांध भरे
माहौल से कोई दरिंदा निकल कर दामिनी या गुड़िया जैसे मासूम को रोंद जाता है तो समाज बौखला उठता है | सड़कों पर निकल आता है| सड़कों पर निकलना, विरोध करना सुकून
पहुंचाते हैं कि अभी हमारी चेतना निस्तेज नहीं हुई है | फिर क्यों न हम इस चेतना
का सर्जनात्मक उपयोग उन कमियों को दूर करने में करे जो परम्परा और व्यवस्था के नाम
पर समाज में गहरे तक पैठ गया है | नारी गरिमा की सुरक्षा की शुरुआत तो अपने घर के
देहरी से ही करना होगा |</span><span lang="HI" style="font-family: "Mangal","serif"; font-size: 16.0pt; line-height: 115%; mso-ascii-font-family: Calibri; mso-ascii-theme-font: minor-latin; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-hansi-font-family: Calibri; mso-hansi-theme-font: minor-latin;"><o:p></o:p></span></div>
<br />
<div align="center" class="MsoNormal" style="text-align: center;">
<span style="font-size: 16.0pt; line-height: 115%;"><o:p></o:p></span></div>
</div>
Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-14065495863207634672013-04-18T22:37:00.003-07:002013-04-19T22:48:07.990-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<span style="color: magenta;"> <span style="font-size: large;"> उत्सव को धर्म से खतरा है</span> </span><br />
<br />
उत्सव हमारे तंग-परेशान जिन्दगी में हंसी-ख़ुशी के कुछ पल लाते हैं और सांस्कृतिक विरासत का भान कराते हैं | राम-कृष्ण से जुड़े किस्से और उनके आदर्श का जनमानस पर गहरा प्रभाव है और वे समाज के सांस्कृतिक पहचान हैं | भारतीय समाज में राम या कृष्णा के सांस्कृतिक प्रभाव से कोई इंकार नही कर सकता बावजूद इसके कि कुछ लोगों के अपने निजी विचार क्या है? संस्कृति किसी धर्म विशेष तक महदूद नही होती | उसका विस्तार व्यापक होता है| दुर्भाग्य से, उत्सव को धर्म के नशीले रंग में रंगने की साजिश रची जा रही है | उत्सव शक्तिप्रदर्शन और दुसरे धर्मों के लोगों को डराने का एक ओजार बनता जा रहा है और इस कुटिलता पर किसी भी धर्म को क्लीन चिट नही दी जा सकती | |कोई किसी से कम से नहीं है, बस मौका मिलने की जरूरत होती है | रामनवमी और विजयादशमी पर तो शस्त्रों का प्रदर्शन बेखौफ किया जाता रहा है और धर्म के नाम पर सभी आँखे मूंदे रहते हैं | कुछेक साल पहले बसंत-पंचमी और मुहम्मद साहेब का जन्मदिन एक ही तारीख को पड़ा था | और हमारे यहाँ मुसलमानों ने पहली बार जूलुस निकाला |किसी को भी इस बात से गुरेज नहीं हो सकता कि कोई समुदाय अपने पैगम्बर के जन्मदिन को न मनाये | लेकिन यहाँ बात दूसरी थी | बसंत- पंचमी के दिन हिन्दुओं के उत्सव (जगह-जगह पूजा पंडाल और भीड़-भाड)के प्रतिक्रिया में ये जुलुस निकलने का निर्णय लिया गया था | मेरे एक मुस्लिम दोस्त ने जुलुस निकालने के नियत पर सवाल उठाया तो उसे काफ़िर कहकर दुत्कारा गया | और इस तरह पहली बार हमारे इलाके में साम्प्रदायिकता की 'बू' फैली | कट्टरता ने सामाजिक- सांस्कृतिक वातावरण में सरांध पैदा की | कहने का तात्पर्य यह है कि कुछ स्वार्थी-उन्मादी तत्व इस देश में आम आदमी के धार्मिक भावनाओं का भयादोहन करते है |उनका उदेश्य हमारी सांस्कृतिक चेतना का वध करना और अपने स्वार्थों की पूर्ति करना है | उत्सव मानना चाहिए , लेकिन उसे धर्म के कसौटी पर कसना बेमानी है | <br />
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<br /></div>
Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-77042834331111432202013-04-13T19:54:00.000-07:002013-04-13T19:54:01.434-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<br /></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="background-color: white;"><span style="color: lime;">जय भीम ! जय भारत !</span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="background-color: white;"><span style="color: lime;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: center;">
<span style="background-color: white;"><span style="color: lime;"><br /></span></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 1.38; text-align: left;">आज बाबा साहेब श्री भीमराव अम्बेडकर का जन्मदिन है | उनकी जैसी शख्शियत के बारे में मैं क्या कुछ लिख पाउँगा | लेकिन लिखना चाहता हूँ ताकि उन्हें अपनी श्रदा सुमन अर्पित कर सकूं | </span></div>
<div style="text-align: left;">
</div>
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}" style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; font-weight: normal; line-height: 14px; margin: 0px 0px 5px; padding: 0px; word-break: break-word; word-wrap: break-word;">
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-size: 13px; line-height: 1.38;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #333333; font-size: 13px; line-height: 1.38;">समाज के अत्यंत दमित वर्ग में जन्मे बाबा साहेब ने आजीवन भारतीय सामाजिक रूदियों के दंश सहे | ये दंश भारतीय समाज के बड़े वर्ग को सदियों से सहना पड़ना पड़ रहा था, और आज भी किसी न किसी रूप में बदस्तूर जारी है | बाबा साहेब के जीवन संधर्भ को जानने की कोशिश करते हुए समाज के एक बड़े वर्ग के प्रति अत्याचार की ऐतिहासिकता को समझा जा सकता है | जो समूचे मानवता को शर्मसार करती है | क्या हम ऐसे समाज में रहना पसंद करेंगे, जहाँ का एक वर्ग केवल किसी खास कुल में जन्म लेने के कारण त्याज्य हो ? क्यों हमारी संवेदना एक सीमा तक पहुँच कर सुन्न पड़ जाती है ? दुर्भाग्य से ऐसा पूर्वाग्रह आज भी बदस्तूर जारी है | हाँ, इसमें आ रहे बदलाव की आहत सुनायी दे रही है |</span></div>
<span class="messageBody" data-ft="{"type":3}" style="color: #333333; font-size: 13px; line-height: 1.38;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 1.38;"><br /></span></div>
<div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 1.38;">आज बाबा साहेब को जीवन सन्दर्भ को निरपेक्षता से समझने की और ज्यादा आवश्यकता है | क्योंकि आरक्षण के राजनीतिकरण और जातीय राजनीति आदि के लिये समाज का एक बड़ा तबका उन्हें जिम्मेवार मानता है | नतीजतन समाज में अगड़ों -पिछड़ों के बीच कटू प्रतिक्रिया उत्पन्न हो रही है , जो देश, समाज के लिये हितकर नहीं है | बाबा साहेब दलित- दमित वर्ग को मुख्य धारा से जोड़ना चाहते थे | धर्म के वर्ण व्यवस्था को तोड़कर धर्म का समूल नाश चाहते थे | उन्होंने कभी जाति की राजनीति नही की | दुर्भाग्य से उन्हें आज एक खास वर्ग का नेता बनाने की कोशिश की जा रही है |हमे ऐसे बहकावे में आने से बचना होगा | जय भीम ! जय भारत !</span></div>
</span></h5>
<div style="text-align: justify;">
<span class="messageBody" data-ft="{"type":3}" style="color: #333333; font-size: 13px; line-height: 1.38;"><br /></span></div>
<form action="http://www.facebook.com/ajax/ufi/modify.php" class="live_520222044703797_316526391751760 commentable_item autoexpand_mode" data-live="{"seq":0}" id="u_3o_2" method="post" rel="async" style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px; margin: 0px; padding: 0px;">
</form>
</div>
Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-26798663183181405902013-04-06T23:16:00.001-07:002013-04-06T23:17:58.227-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<br />
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}" style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; font-weight: normal; margin: 0px 0px 5px; padding: 0px 20px 0px 15px; word-break: break-word; word-wrap: break-word;">
<span style="color: #333333;"><span style="line-height: 17px;"><br /></span></span></h5>
<h2 style="text-align: left;">
<span style="line-height: 17px;"><span style="color: lime;"> दलित आन्दोलन के प्रति कुछ चिंताएं </span></span></h2>
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}" style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; font-weight: normal; line-height: 18px; margin: 0px 0px 5px; padding: 0px 20px 0px 15px; word-break: break-word; word-wrap: break-word;">
<span style="color: #333333; line-height: 1.38;">दलितों का समाज के किसी भी मुख्यधारा में उचित प्रतिनिधित्व नही है |उन्हें सदियों से जान बुझकर अलग थलग रखा गया है | निस्संदेह ऐसी व्यवस्था अनैतिक और आधारहीन है | आज दलित अपने अधिकार और अस्मिता को लेकर सजग हुए हैं और वक्त का तकाजा है कि स्वर्ण जातियां अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर सच्चाई को स्वीकार करे | समाज के एक बड़े वर्ग के उपेक्षा के कारण ही भारत अपने सुदीर्घ गौरवशाली अतीत के बावजूद सदियों तक गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा रहा | मिथ्या जातीय यशोगान और अभिजात्य सोच ने देश को रसातल में पहुंचा दिया | एक बड़े वर्ग की उपेक्षा कर के कोई भी समाज भला जिन्दा कैसे रह सकता है ? बावजूद इसके भारतीय समाज के जिन्दा बचे रहने का कारण दलितों की सहनशीलता, मानवीय सौहाद्रता में विश्वास और अपनी मिटटी से प्यार रहा हैं | लिहाजा , यह समय का तकाजा है की हम अपनी गलतियों को सुधारे |</span></h5>
<h5 class="uiStreamMessage userContentWrapper" data-ft="{"type":1,"tn":"K"}" style="background-color: white; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; font-weight: normal; line-height: 18px; margin: 0px 0px 5px; padding: 0px 20px 0px 15px; word-break: break-word; word-wrap: break-word;">
<span class="messageBody" data-ft="{"type":3}" style="color: #333333; line-height: 1.38;">रही बात विभिन्न संस्थानों में उचित प्रतिनिधित्व की तो उन्हें (दलितों) जरूर मिलना चाहिए लेकिन केवल इसलिए नही कि वे दलित है |उन्हें इसलिए अवसर मिलना चाहिए कि वे योग्य हैं और उनका यह अधिकार है | केवल सर्वेक्षणों और आंकड़े के बल पर अगड़ी-पिछड़ी की लड़ाई लड़ने से समाज में केवल अर्थहीन प्रतिक्रिया ही उत्पन्न होगी जो अंततः हमे कहीं नही ले जाएगी |समाज में दमनकारी और दमित चेहरे भर बदल जायेंगे, लेकिन समाज और देश का मूल दांचा वही रह जायेगा | गौरतलब है कि समाज की विसंगतियों का सबसे ज्यादा शिकार दलित के अलावे ,महिलाएं(स्वर्ण सहित) और अल्पसंख्यक भी रहे हैं क्योंकि वे आर्थिक रूप से कमजोर रहे हैं और उन्हें रखा भी गया है | इसलिए उनका भी ख्याल रखना होगा | कहने का तात्पर्य यह है की बदलाव के ‘बयार’ को ‘उन्माद’ में बदलने से रोकना होगा | दलित उत्थानके अनुषंगी कार्यक्रम के रूप में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिये भी समन्वयकारी कार्यकम चलाने होगें | यह याद रखना जरूरी है कि भारत की मूल प्रवृति ही सामंतवादी है |जिसे नष्ट करना जरूरी है | क्या यह दुर्भाग्यपूर्ण नही है की अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर सफलता प्राप्त करने वाला दमित जाति का व्यक्ति आगे चलकर खुद को समाज के अभिजात्य वर्ग तक सीमित कर लेता है | और मूल उदेश्य कहीं दूर पीछे छूट जाते हैं |</span></h5>
<div class="clearfix" style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 11px; line-height: 14px; zoom: 1;">
<div class="uiCommentContainer" style="margin-bottom: -4px;">
<div class="fbTimelineUFI" style="margin-top: 3px; position: relative; top: 12px;">
<form action="http://www.facebook.com/ajax/ufi/modify.php" class="live_517224895003512_316526391751760 commentable_item autoexpand_mode" data-live="{"seq":"517224895003512_4969401"}" id="u_jsonp_9_2" method="post" rel="async" style="margin: 0px; padding: 0px;">
<div class="fbTimelineFeedbackHeader">
<div class="fbTimelineFeedbackActions clearfix" style="background-color: #edeff4; padding: 5px 12px; zoom: 1;">
<span class="UIActionLinks UIActionLinks_bottom" data-ft="{"tn":"=","type":20}" style="color: #999999;"><a aria-live="polite" class="UFILikeLink" data-ft="{"tn":">"}" href="http://www.facebook.com/sujit.sinha.378/posts/517224895003512?notif_t=like#" id=".reactRoot[91]" role="button" style="color: #3b5998; cursor: pointer; text-decoration: none;" title="Like this item">L</a></span></div>
</div>
</form>
</div>
</div>
</div>
</div>
Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-43357735790964800092012-04-21T02:05:00.000-07:002012-04-21T02:05:44.588-07:00हाँ जी ,हम भी हिन्दू हैं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><br />
<div style="text-align: left;"><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;">हिन्दू और हिन्दुस्तानी कौन हैं ? इसका फैसला कौन करेगा ? हिंदी, हिन्दू और हिन्दुस्तानी कल्चर पर हो-हल्ला करने और स्वयंभू निर्णायक होने की जिम्मेवारी एक समूह विशेष ने ले रखी है । जो लोग मनुवादी सिस्टम का समर्थन करे, अप्रासंगिक पुरानी मिथकों को परम्परा के नाम पर डोए...केवल वही हिन्दुस्तानी और हिन्दू हैं | जो लोग कट्टरता का विरोध करे और हिन्दुइज्म के कमियों की और इशारे करे वो काफ़िर और संस्कारहीन | अब प्रश्न है कि ये कौन हैं ? इनका निजी स्वार्थ क्या है? ये वही हिन्दू धर्म के ठीकेदार हैं जिन्होंने लोगों की </span><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;">पैदाइश </span><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;"> ब्रह्मा के अलग-अलग अंगो से </span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #333333; display: inline; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;">बताकर माँ के कोख का अपमान किया | केवल कुछ जाति के लोगों को ही शिक्षा के लायक समझा | आस्था के नाम पर लोगों का भयादोहन किया गया । नाना -नाना तरीके से उन्होंने हिन्दू धर्म को "पॉकेट धर्म" बनाने की कोशिश की | फिर भी हिन्दू धर्म में आम लोगो की आस्था बनी रही | क्योंकि हिन्दुइस्म संस्कार है, सांस है, जीवन दर्शन है | ये मात्र कुछ लोगों की संस्था बन ही नहीं सकती | इसका स्वरुप विराट है | इसने हर कल्चर के अच्छाइयों को आत्मसात किया है | इसलिए आज भी जीवित है, जवान है| इसलिए आज भी पूरी दुनिया को आकर्षित करता है |दुर्भाग्य से आज भी कुछ समूह हिंदी, हिन्दू और हिंदुस्तान पर केवल अपनी दावेदारी जताते हैं | सामंजस्यता उन्हें स्वीकार नहीं । उनका दिवास्वप्न है की वे फिर से ब्राहमणवादी सिस्टम को लागू कर पाएंगे ।</span></div></div><div style="text-align: left;"><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #333333; display: inline; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;"> हमें किसी भी प्रकार के भुलावे में नहीं आना होगा | अन्धविश्वास और अपनी बुराइयों से खुद लड़ना होगा | परम्परा और आधुनिकता में सामंजस्य बैठाना होगा | केवल मंदिर में माथा टेकना ही परम्परा नहीं,वरण ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न करना भी हमारी परम्परा का ही हिस्सा है | हिदू और हिंदुस्तान किसी की बपौती नहीं है | ये हमारा है | चाहे हम हिन्दू हैं, मुस्लिम हैं या कम्युनिस्ट हैं - ये देश और संस्कृति हमारे सांस- सांस में बसी है । </span></div></div>Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-83245790013597326832012-04-17T03:04:00.000-07:002012-04-17T03:04:30.378-07:00लिखते -लिखते<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div style="text-align: left;"><span style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;">आज कुछ लिखने का मन हो रहा है | किस विषय पर लिखूं ! एक व्यक्ति में छुपी असीम संभावनाओं पर या उसकी क्षुद्रता पर....| कृत्रिमता के आत्केंद्रित रवैये पर या फिर प्रकृति की विराट सृजनात्मकता पर....| कोलाहल के बीच कोने पर टंगी ख़ामोशी और 'आत्म-पहचान' की तलाश में भटकती जिन्दगी के साथ-साथ अपने अंदर दफ़न शर्म और पछतावे भी कलम उठाते ही अपना -अपना हिसाब मांगने लगते हैं| सदियों की सिसकियाँ मौन के दरवाजे पर दस्त</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #333333; display: inline; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;">क देने लगती हैं | शायद इन्ही सिसकियों को चेखव, स्त्रिन्बर्ग , ज्योतिबा फूले, प्रेमचंद , गाँधी, मुक्तिबोध, या निर्मल वर्मा जैसे पीड़ित आत्माओं ने अपनी-अपनी तन्हाइयों में सुना होगा ? किसकी पुकार सुन सिद्धार्थ ने घर त्याग दिया था ? गिलगमेश और प्रोमेथियश ने क्यों खुद को दू:खों के भट्टी में झौंक दिया ?सदियों से धर्म और कुलीनता के नाम पर मानवीय सभ्यता ने जो त्रासदियाँ झेली हैं ....उनकी रुदन का हिसाब कौन और कब तक चुकता करेगा ?</span></div></div>Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-1661328511426540762012-04-03T09:23:00.001-07:002012-04-03T09:23:29.451-07:00समालोचन: मति का धीर : निर्मल वर्मा<a href="http://samalochan.blogspot.in/2012/04/blog-post.html">समालोचन: मति का धीर : निर्मल वर्मा</a>Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-75294076839984029942011-10-12T06:53:00.000-07:002011-10-12T06:53:58.644-07:00मानवीय चेतना और उसके अस्तित्व की साथर्कता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Georgia, 'Times New Roman Times', serif; font-size: 12px; line-height: 20px;"></span><br />
<div style="border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; font-family: inherit; font-size: 15px; font-style: inherit; font-weight: inherit; margin-bottom: 15px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;"><span style="border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; color: #993366; font-family: inherit; font-size: 15px; font-style: inherit; font-weight: inherit; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px; vertical-align: baseline;"><strong style="font-weight: bold;">राजनामा.कॉम।</strong> मैं सोच सकता हूँ , इसलिए मेरा अस्तित्व है”, रिनी देकार्ते के इस कथन को स्वीकार लेने मात्र से आदमी के चेतना और उसके अस्तित्व की सार्थकता की शुरुआत होती है | प्रकृति ने चिंतन -मनन की क्षमता केवल आदमी को दी है | उसकी अपनी संवेदनशीलता और चेतनशीलता ने प्रकृति की संभावनाओं को टटोला और इसी टोह के क्रम में प्रकृति के कई रहस्यमय परतों को खोला है | इसलिए संसार गतिशील है और हर बदलाव में एक ही चीज स्थाई दिखती है और वह है- ‘आदमी की चेतना’ | चेतना समय -समय पर आदमी के अस्तित्व , उसका मानकीकरण और बदलाव की पड़ताल करती रही है और तदनुसार अपेक्शित सुधार भी | तात्कालिक युगीन समस्याओं और शंकाओं तथा अलग- अलग मौलिक चिन्तनो ने कई विरोधाभासी सिध्यान्तो को जन्म दिया | मसलन वेदों में कही बातें और उपनिषद के दर्शन में विरोध है | समकालिक बुद्ध और महावीर के विचार कई विषयों पर अलग -अलग थे |</span></div><div style="border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; font-family: inherit; font-size: 15px; font-style: inherit; font-weight: inherit; margin-bottom: 15px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;"><span style="border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; color: #993366; font-family: inherit; font-size: 15px; font-style: inherit; font-weight: inherit; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px; vertical-align: baseline;">आधुनिक काल में विश्व के चिंतन धारा को प्रभावित करने वाले दो महापुरुषों कार्ल मार्क्स और महात्मा गाँधी के विचारों में भारी अंतर है | दरअसल ये भिन्नताएं चेतना की मौलिकता और नेरंतार्य के औचित्य को सिद्ध करते हैं | अलग -अलग विचारों के घर्षण से आदमी की चेतना और भी मुखर हुई | वैज्ञानिक विकाश और भौतिक उपलब्दियों के आलावे ‘मानवाधिकार ‘, नारी स्वतंत्रता और उसके गरिमा , सामंजस्य और सह- अस्तित्व जैसे मुधे पर इन्सान ने प्रगति की है | आदिमयुग से लेकर वर्तमान युग तक चेतना के विकाश क्रम में १२१५ इसवी का मेग्नाकर्ता, १६६८ इसवी में इंग्लॅण्ड में हुए रक्तहीन क्रांति, फ्रांश की क्रांति (१७८९ ) , सर्वभोमिक मानवाधिकार घोषणापत्र , पर्यावरण को लेकर हुए ‘पृथ्वी सम्मेलन’ आदि मिल के पत्थर साबित हुए हैं | इन्टरनेट, सोशल साईटस , व टिवटर आदि ने चेतना के अभिव्यक्ति के नए द्वार खोले हैं | जहाँ से आम आदमी की चेतना की अनुगूँज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है | आदमी के अस्तित्व का अपना औचित्य है | उसके अपने विधेयक मूल्य हैं | जब कुछ भी उस पर आरोपित होता है , जो उसके विधेयकता का दलन करता है , तो वह विद्रोह कर बैठता है | दलन के खिलाफ उठाई गयी आवाज मानवीय समाज के सबसे विशिष्ट विधेयक मूल्य हैं| </span></div><div style="border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; font-family: inherit; font-size: 15px; font-style: inherit; font-weight: inherit; margin-bottom: 15px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;"><span style="border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; color: #993366; font-family: inherit; font-size: 15px; font-style: inherit; font-weight: inherit; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px; vertical-align: baseline;"> आज पूरी दुनिया में इसी चेतना की हुंकार सुनाई दे रही है| अफ़्रीकी देशों में लोकतंत्र की स्थापना को लेकर हुए आन्दोलन और मिली सफलताऍ तो महज आगाज हैं | अरब में भी बदलाव के बयार चल रहे हैं, जिसे मीडिया जगत में ‘अरब स्प्रिंग ‘ कहा जा रहा है | अमेरिका में बेरोजगारों का प्रदर्शन , भारत में भ्रष्टाचार के किलाफ़ जनता की लामबंदी , पुरे विश्व में आतंक के विरुद्ध एकजुटता ने यह सिद्ध कर दिया है की कोई भी सिस्टम चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो , मानवीय गरिमा के प्रश्न को कुचल नही सकता | चेतना का अरुध प्रवाह ही सत्य है ,सुन्दर है |सामाजिक विषमताओं के विरुद्ध यह संघर्ष उस समय तक जारी रहेगा , जब तक हरेक व्यक्ति को अपने सृजन पर आधारित ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ‘ नहीं मिल जाति है | हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह संसार एक साझे की जिंदगी है और हम सोच सकते हैं , इसलिए हमारा अस्तित्व है | </span></div><div style="border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; font-family: inherit; font-size: 15px; font-style: inherit; font-weight: inherit; margin-bottom: 15px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px; text-align: justify; vertical-align: baseline;"><strong style="font-weight: bold;"><span style="border-bottom-width: 0px; border-color: initial; border-left-width: 0px; border-right-width: 0px; border-style: initial; border-top-width: 0px; color: blue; font-family: inherit; font-size: 15px; font-style: inherit; font-weight: inherit; margin-bottom: 0px; margin-left: 0px; margin-right: 0px; margin-top: 0px; padding-bottom: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; padding-top: 0px; vertical-align: baseline;">……………सुजीत सिन्हा</span></strong></div></div>Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-23776535556037714462011-06-18T23:59:00.001-07:002011-06-18T23:59:31.888-07:00... क्योंकि मैं 'इन्सान'हूँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"> मनुष्य एक जिज्ञासु व विवेकशील प्राणी है | अनुभवों से सीखना और किसी भी घटना पर अपनी राय बनाना उसकी सहज प्रवृति रही है | इसी रेसिनिलिती ने उसे सामुदायिक जीवन की और प्रेरित किया |उसके तार्किक क्षमता व चुनौतियों से लड़ने के अनाहत जज्बा ने विकाश के कई अप्रतिम प्रतिमान स्थापित किये | नतीजतन सामुदायिक जीवन सरल, आकर्षक बना और परस्पर सम्बन्ध- संवाद प्रगाद हुए | बौद्धिक पिपासा ने साहित्य , संगीत , चित्रकारी , खेलकूद जैसे कई विधाओं को जन्म दिया | इन विधाओं के जरिये वह खुद को अभिव्यक्त करता रहा है | वस्तुतः इस बात में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि इन्सान पानी व नमक के बिना तो रह सकता है , लेकिन प्यार व जज्बात के बिना नहीं |आज इन्टरनेट क्रांति ने संबंधो का दायरा बढाया है | फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल साइट्स पर हम और जयादा मुखर होकर सामने आये हैं | विचारों का सम्प्रेषण और आगमन बस एक क्लिक के साथ पूरी दुनिया में हो जाता है | <br />
ट्विटर व फेसबुक के इस युग में कहने के लिए ढ़ेर सारी बातें हैं | मल्ल्लिका शेरावत के फिगर से लेकर बाबाओं के हाई वोल्टेज ड्रामा और राज-समाज के कई अंदरूनी बातों तक के बारे में हमारे पास कमेंट्स हैं | बस बात नहीं है, तो खुद से करने को, समय नहीं है तो अपने अंदर निरंतर बहने वाली मौन की कल- कल धारा के संगीत को सुनने का , दृष्टि नहीं है तो रजनीगंधा की कलियों को खिलते देखने का , सरोकार नहीं है तो उस अनाथ बुढ़िया से , जो पहले रोज गली में दिख जाती थी , पर अब कई दिनों से गायब है |<br />
तेजी से विस्तृत होते सांसारिक फलक पर मनुष्य और उसके 'स्व' का रिश्ता बिन्दुगत होता जा रहा है | नतीजतन अवसाद , सेक्लुजन चुपके - चुपके हमारे सामुदायिक और व्यक्तिगत जीवन में घर करते जा रहें | दुर्भाग्य से जिन्दगी जीने के होड़ में हम जिन्दगी को ही भूलते जा रहे हैं | <br />
इस अवसाद से बचने के लिए जरुरी है, अपने 'इनरबुक' पर अकाउंट खोलने और उसके रेगुलर अपढेसन की | हम अपने से भी बातें कर सकते हैं | मन हमारी बातों को सुनता है और हमारी समझ के आईने पर जमे गर्द को झाड़ता भी है |वह हमारे आत्मकेंद्रित होते जा रहे विचारों को पिघलाता भी है | मन हमें समझाता है की हम वास्तव में क्या चाहते हैं , हमारे मनवांछित लक्ष्य के मार्ग में कोई रुकावट है तो उसकी काट क्या है? हम क्यों अटके पड़ें हैं| रौशनी का अंधकार इतना गहन क्यों है? <br />
मौन की धारा के साथ बहते जाईये , सुनाई देगी गुलाबी हवाओं की थपक, चिड़ियों की चहक , दिखाई देंगी शाम की आभा सिंदूरी, बादलों की पकड़ा-पकड़ी और महसूस होगा ..... हाँ मैं हूँ .... यहीं हूँ , पूरी कायनात के संग मेरा सरोकार है | मैं विचारशील व सामाजिक प्राणी हूँ ... क्योंकि मैं 'इन्सान'हूँ |</div>Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-49036352511334809312011-01-23T04:22:00.000-08:002011-01-23T04:22:13.455-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span></span><span></span>स्वामी विवेकानंद ने कहा है, "दुर्बलता का उपचार सदैव उसी का चिंतन करना नहीं , बल्कि अपने भीतर निहित बल का स्मरण करना है . तुम पूर्णरूप तथा शुद्स्वरूप हो और जिसे तुम पाप कहते हो, वह तुम में नहीं है . जिसे तुम 'पाप' कहते हो,वह तुम्हारी आत्माभिव्यक्ति का निम्न रूप है .<br />
अपने भीतर छिपी हुई क्षमता को क्रियाशील करने के लिए जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चहिये.यदि जीवन में हमारी कोई आकांक्षा या निशिच्त द्येय नहीं है तो इसका अर्थ है की हमें अपनी शक्ति पर विश्वास नहीं है . हमारी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम अपने जीवन का प्रतिक्षण , प्रतिघंटा और प्रतिदिन कैसे बितातें हैं .<br />
जीवन में विशेष उद्देश्य न होने के कई कारण हो सकतें हैं , अपनी अभिरुचियों को पहचानने का ठीक प्रशिक्षण न मिला हो या फिर शारिरीक दुर्बलता आपके लक्ष्य कि प्राप्ति में बाधक सिद्ध हो रही है . अथवा स्वभाव चंचल हो और इस कारण उचित निष्ठा तथा एकाग्रता के बिना ही लक्ष्य कि और बढ़ने का प्रयास कर रहें हो . या फिर अपने काम में रूचि न हो या उसके प्रति योग्यता न हो , हो सकता है कि अपनी योग्यता या क्षमता दिखाने का अवसर ही न मिला हो या आप निराशावादी हो .<br />
अपनी जीवन प्रणाली का विश्लेषण कीजिये और सावधानीपूर्वक विचार करके अपना जीवन लक्ष्य निर्धारित कीजिये, क्योंकि लक्ष्य-विहीन जीवन बिना पतवार कि नाव के सामान इधर उधर भटकता रहता है . परन्तु किसी क्षणिक इच्छा को लक्ष्य नहीं कहा जा सकता है.और न ही अपने निर्धारित कार्य में सफलता रखना ही पर्याप्त है. उसे समय पर पूरा करने के लिए ठीक पद्धति भी अपनानी होगी. सुचारू योजना के अभाव में मूल्यवान मानसिक शक्ति तथा समय का अपव्यय होता है.<br />
अनिश्चता तथा असमंजस को जीतने के लिए स्वंय से पूछिये कि आपको क्या चाहिए . तब आपके सामने अपने जीवन का प्रमुख उद्देश्य स्पष्ट हो उठेगा और ऐसा होने पर आपका मन उसकी प्राप्ति में अपनी सारी शक्ति लगा देगा.<br />
</div>Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5431623587861231173.post-74222725934752174742011-01-02T04:44:00.000-08:002011-01-02T04:46:22.811-08:00kavita ka vardaanशांत, स्नेहिल, निर्द्वंद , क्षण में,<br />
जब मेरी भावनाएं शुन्य से टकराकर ,<br />
वापस लौटती है,<br />
तो सहज कमी महसूस होती है ,<br />
एक मनमीत की ,<br />
जो समझ सके ,<br />
मर्म को ,<br />
मेरे जीवन संधर्भ को .<br />
आज मन मेरा सुधा रस पीकर ,<br />
प्रेम की धारा से जुड़कर ,<br />
तुम्हारा अनुराग चाहता है .<br />
ताकि पा संकू मैं ,<br />
अपने जीवन का आयाम ,<br />
और 'कविता का वरदान'.Sujit Sinhahttp://www.blogger.com/profile/18402156267665941356noreply@blogger.com0