शांत, स्नेहिल, निर्द्वंद , क्षण में,
जब मेरी भावनाएं शुन्य से टकराकर ,
वापस लौटती है,
तो सहज कमी महसूस होती है ,
एक मनमीत की ,
जो समझ सके ,
मर्म को ,
मेरे जीवन संधर्भ को .
आज मन मेरा सुधा रस पीकर ,
प्रेम की धारा से जुड़कर ,
तुम्हारा अनुराग चाहता है .
ताकि पा संकू मैं ,
अपने जीवन का आयाम ,
और 'कविता का वरदान'.
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