अशोक बाबू बड़े उत्साह से आये मेहमानों को अपना नया घर दिखा रहे थे । इस घर में तीन बेड रूम है । यह मेरा बेडरूम है, ये बेटे किसू का स्टडी रूम और बगल में उसके लिए एक सेप्रेट बेड रूम । बेटी के लिए भी यही अरेंजमेंट है । यह बड़ा सा हाल इसलिए बनवाया है कि घरेलू पार्टियां आराम से हो सके । पीछे साइड से सर्वेंट्स रूम है और एक स्विमिंग पूल निर्माणाधीन है ।अकस्मात् एक मेहमान ने पूछा, "और माँ का कमरा कौन सा है ?" अशोक बाबू इस अनचाहे प्रश्न से भौचंक रह गये । लड़खड़ाते हुए जवाब दिया , "पूरा घर तो माँ का ही है।" बरामदे के एक कोने में चौकी पर पड़ी माँ के चेहरे पर निरीहता उभरी । फिर किसी ने न कुछ पूछा और ना ही किसी ने कोई जवाब दिया ।
1 comment:
एक गहरी टीस उभरती है जब कभी ऐसा कहीं दिखाई देता है .. जाने क्यों लोग भूल जाते है जो राह हम चुन रहे हैं उस पर हमें भी चलना है एक दिन ..
गहरी संवेदना है एक लघु कथा में
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