हिन्दू और हिन्दुस्तानी कौन हैं ? इसका फैसला कौन करेगा ? हिंदी, हिन्दू और हिन्दुस्तानी कल्चर पर हो-हल्ला करने और स्वयंभू निर्णायक होने की जिम्मेवारी एक समूह विशेष ने ले रखी है । जो लोग मनुवादी सिस्टम का समर्थन करे, अप्रासंगिक पुरानी मिथकों को परम्परा के नाम पर डोए...केवल वही हिन्दुस्तानी और हिन्दू हैं | जो लोग कट्टरता का विरोध करे और हिन्दुइज्म के कमियों की और इशारे करे वो काफ़िर और संस्कारहीन | अब प्रश्न है कि ये कौन हैं ? इनका निजी स्वार्थ क्या है? ये वही हिन्दू धर्म के ठीकेदार हैं जिन्होंने लोगों की पैदाइश ब्रह्मा के अलग-अलग अंगो से बताकर माँ के कोख का अपमान किया | केवल कुछ जाति के लोगों को ही शिक्षा के लायक समझा | आस्था के नाम पर लोगों का भयादोहन किया गया । नाना -नाना तरीके से उन्होंने हिन्दू धर्म को "पॉकेट धर्म" बनाने की कोशिश की | फिर भी हिन्दू धर्म में आम लोगो की आस्था बनी रही | क्योंकि हिन्दुइस्म संस्कार है, सांस है, जीवन दर्शन है | ये मात्र कुछ लोगों की संस्था बन ही नहीं सकती | इसका स्वरुप विराट है | इसने हर कल्चर के अच्छाइयों को आत्मसात किया है | इसलिए आज भी जीवित है, जवान है| इसलिए आज भी पूरी दुनिया को आकर्षित करता है |दुर्भाग्य से आज भी कुछ समूह हिंदी, हिन्दू और हिंदुस्तान पर केवल अपनी दावेदारी जताते हैं | सामंजस्यता उन्हें स्वीकार नहीं । उनका दिवास्वप्न है की वे फिर से ब्राहमणवादी सिस्टम को लागू कर पाएंगे ।
हमें किसी भी प्रकार के भुलावे में नहीं आना होगा | अन्धविश्वास और अपनी बुराइयों से खुद लड़ना होगा | परम्परा और आधुनिकता में सामंजस्य बैठाना होगा | केवल मंदिर में माथा टेकना ही परम्परा नहीं,वरण ईश्वर के अस्तित्व पर प्रश्न करना भी हमारी परम्परा का ही हिस्सा है | हिदू और हिंदुस्तान किसी की बपौती नहीं है | ये हमारा है | चाहे हम हिन्दू हैं, मुस्लिम हैं या कम्युनिस्ट हैं - ये देश और संस्कृति हमारे सांस- सांस में बसी है ।
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