Sunday, January 23, 2011

स्वामी विवेकानंद ने कहा है, "दुर्बलता का उपचार सदैव उसी का चिंतन करना नहीं , बल्कि अपने भीतर निहित बल का स्मरण करना है . तुम पूर्णरूप तथा शुद्स्वरूप  हो और जिसे तुम पाप कहते हो, वह तुम में नहीं है . जिसे तुम 'पाप' कहते हो,वह तुम्हारी आत्माभिव्यक्ति का निम्न रूप है .
                                           अपने भीतर छिपी हुई क्षमता को क्रियाशील करने के लिए जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चहिये.यदि   जीवन में हमारी कोई आकांक्षा  या निशिच्त द्येय  नहीं है तो इसका अर्थ है की हमें अपनी शक्ति पर विश्वास नहीं है . हमारी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम अपने  जीवन का प्रतिक्षण , प्रतिघंटा  और प्रतिदिन कैसे बितातें हैं .
                                                        जीवन में विशेष उद्देश्य न होने के कई कारण हो सकतें हैं , अपनी अभिरुचियों को पहचानने का ठीक प्रशिक्षण न मिला हो या फिर शारिरीक दुर्बलता आपके लक्ष्य कि प्राप्ति में बाधक सिद्ध हो रही है . अथवा स्वभाव चंचल हो और इस कारण उचित निष्ठा तथा एकाग्रता के बिना ही लक्ष्य कि और बढ़ने का प्रयास कर रहें हो . या फिर अपने काम में रूचि न हो या उसके प्रति योग्यता न हो , हो सकता है कि अपनी योग्यता या क्षमता दिखाने का अवसर ही न मिला हो या आप निराशावादी  हो .
                                               अपनी जीवन प्रणाली का विश्लेषण कीजिये और सावधानीपूर्वक विचार करके अपना जीवन लक्ष्य निर्धारित कीजिये, क्योंकि लक्ष्य-विहीन जीवन बिना पतवार कि नाव के सामान इधर उधर भटकता रहता है . परन्तु किसी क्षणिक इच्छा को लक्ष्य नहीं कहा जा सकता है.और न ही अपने निर्धारित कार्य में सफलता रखना ही पर्याप्त है. उसे समय पर पूरा करने के लिए ठीक पद्धति  भी अपनानी होगी. सुचारू योजना के अभाव में मूल्यवान मानसिक शक्ति तथा समय का अपव्यय होता है.
                              अनिश्चता तथा असमंजस को जीतने के लिए स्वंय से पूछिये कि आपको क्या चाहिए . तब आपके सामने  अपने जीवन का प्रमुख  उद्देश्य स्पष्ट हो उठेगा और ऐसा होने पर आपका मन उसकी प्राप्ति में अपनी सारी शक्ति लगा देगा.
                                                       

Sunday, January 2, 2011

kavita ka vardaan

शांत, स्नेहिल, निर्द्वंद , क्षण में,
जब मेरी भावनाएं शुन्य से टकराकर ,
वापस लौटती है,
तो सहज कमी महसूस होती है ,
एक मनमीत की ,
जो समझ सके ,
मर्म को ,
मेरे जीवन संधर्भ  को .
        आज मन मेरा सुधा रस पीकर ,
        प्रेम की धारा से जुड़कर ,
        तुम्हारा अनुराग चाहता है .
             ताकि पा संकू मैं  ,
      अपने जीवन का आयाम ,
     और 'कविता का वरदान'.