Wednesday, October 12, 2011

मानवीय चेतना और उसके अस्तित्व की साथर्कता


राजनामा.कॉम। मैं सोच सकता हूँ , इसलिए मेरा अस्तित्व है”, रिनी देकार्ते के इस कथन को स्वीकार लेने मात्र से आदमी के चेतना और उसके अस्तित्व की सार्थकता की शुरुआत होती है | प्रकृति ने चिंतन -मनन की क्षमता केवल आदमी को दी है | उसकी अपनी संवेदनशीलता और चेतनशीलता ने प्रकृति की  संभावनाओं को टटोला और इसी टोह  के क्रम में प्रकृति के कई रहस्यमय परतों को खोला है | इसलिए संसार गतिशील है और हर बदलाव में एक ही चीज स्थाई दिखती है  और वह है- ‘आदमी की चेतना’ | चेतना समय -समय पर आदमी के अस्तित्व , उसका मानकीकरण और बदलाव की पड़ताल करती रही है और तदनुसार अपेक्शित सुधार भी | तात्कालिक युगीन समस्याओं और शंकाओं तथा अलग- अलग मौलिक चिन्तनो ने कई विरोधाभासी सिध्यान्तो को जन्म दिया | मसलन वेदों में कही बातें और उपनिषद के दर्शन में विरोध है | समकालिक बुद्ध और महावीर के विचार कई विषयों पर अलग -अलग थे |
आधुनिक काल में विश्व के चिंतन धारा को प्रभावित करने वाले दो महापुरुषों कार्ल मार्क्स और महात्मा गाँधी के विचारों में भारी अंतर है | दरअसल ये भिन्नताएं चेतना की मौलिकता और नेरंतार्य के औचित्य को सिद्ध करते हैं | अलग -अलग विचारों के घर्षण से आदमी की चेतना और भी मुखर हुई | वैज्ञानिक विकाश और भौतिक उपलब्दियों के आलावे ‘मानवाधिकार ‘, नारी स्वतंत्रता और उसके गरिमा , सामंजस्य और सह- अस्तित्व जैसे मुधे  पर इन्सान ने प्रगति की है | आदिमयुग से लेकर वर्तमान युग तक चेतना के विकाश क्रम में १२१५ इसवी का मेग्नाकर्ता, १६६८ इसवी में इंग्लॅण्ड में हुए रक्तहीन क्रांति, फ्रांश की क्रांति (१७८९ ) , सर्वभोमिक मानवाधिकार घोषणापत्र , पर्यावरण को लेकर हुए ‘पृथ्वी सम्मेलन’ आदि मिल के पत्थर साबित हुए हैं | इन्टरनेट, सोशल साईटस , व टिवटर आदि ने चेतना के अभिव्यक्ति के नए द्वार खोले हैं | जहाँ से आम आदमी की चेतना की अनुगूँज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है | आदमी के अस्तित्व का अपना औचित्य है | उसके अपने विधेयक मूल्य हैं | जब कुछ भी उस पर आरोपित होता है , जो उसके विधेयकता का दलन करता है , तो वह विद्रोह कर बैठता है | दलन के खिलाफ उठाई गयी आवाज मानवीय समाज के सबसे विशिष्ट विधेयक मूल्य  हैं| 
                        आज पूरी दुनिया में इसी चेतना की हुंकार सुनाई दे रही है| अफ़्रीकी देशों में लोकतंत्र की स्थापना को लेकर हुए आन्दोलन और मिली सफलताऍ तो महज आगाज हैं | अरब में भी बदलाव के बयार चल रहे हैं, जिसे मीडिया जगत में ‘अरब स्प्रिंग ‘ कहा जा रहा है | अमेरिका में बेरोजगारों का प्रदर्शन , भारत में भ्रष्टाचार के किलाफ़ जनता की लामबंदी , पुरे विश्व में आतंक के विरुद्ध एकजुटता ने यह सिद्ध कर दिया है की कोई भी सिस्टम चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो , मानवीय गरिमा के प्रश्न को कुचल नही सकता | चेतना का अरुध प्रवाह ही सत्य है ,सुन्दर है |सामाजिक विषमताओं के विरुद्ध यह संघर्ष उस समय तक जारी रहेगा , जब तक हरेक व्यक्ति को अपने सृजन पर आधारित ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ‘ नहीं मिल जाति है | हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह संसार एक साझे की जिंदगी है और हम सोच सकते हैं , इसलिए हमारा अस्तित्व है | 
……………सुजीत सिन्हा