Thursday, November 28, 2013

हाट में खड़ा मैं


आज हाट में खड़ा हुआ हूँ
मैं मेरे परिजन
मोलजोल कर रहे हैं मेरा
आये ग्राहक के संग |
रेट तो पता ही है सबको
आएइअस 1 करोड़ , पीओ की है 20 लाख '|
हम आपसे ज्यादा कहाँ मांग रहे हैं
और हाँ "सौदा" हो मनभावन
गोरी, लंबी, छरहरी और
संस्कारी सीता की तरह |
उपजाऊ भी हो ताकि जन सके 'कुलदीपक' |
जवाब में,
वे बता रहे हैं अपने 'सामान' का
रंग-रूप , तौर , शहूर |
मैं चुप हूँ , क्योंकि मुझे समझाया गया है
कि ऐसे मामलों में संस्कारी लड़के कुछ नहीं बोलते |
मैं देख रहा हूँ ,
मैं बेचा जा रहा हूँ ,
अपनों के अहसान में जकड़ा 'बुत' खड़ा हूँ |
आज क्यों मेरे स्वर मूक हो गये हैं ?
पताका उठाने को तत्पर हाथ कैसे लोथ हो गए हैं ?
क्या उलझन ? , कैसा द्वन्द है ?
क्यों इतना बेबस  खड़ा हूँ मैं ?