Saturday, June 18, 2011

... क्योंकि मैं 'इन्सान'हूँ

 मनुष्य एक  जिज्ञासु व विवेकशील प्राणी है | अनुभवों से सीखना और किसी भी घटना पर अपनी राय बनाना उसकी सहज प्रवृति रही है | इसी रेसिनिलिती  ने उसे सामुदायिक जीवन की और प्रेरित किया |उसके तार्किक क्षमता व चुनौतियों से लड़ने के अनाहत जज्बा ने विकाश के कई अप्रतिम प्रतिमान स्थापित किये | नतीजतन सामुदायिक जीवन सरल, आकर्षक बना और परस्पर सम्बन्ध- संवाद प्रगाद हुए | बौद्धिक पिपासा ने साहित्य , संगीत , चित्रकारी , खेलकूद जैसे कई विधाओं को जन्म दिया | इन विधाओं के जरिये वह खुद  को अभिव्यक्त करता रहा है | वस्तुतः इस बात में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि इन्सान पानी व नमक के बिना तो रह सकता है , लेकिन प्यार व जज्बात के बिना नहीं |आज इन्टरनेट क्रांति ने संबंधो का दायरा बढाया है | फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल साइट्स पर हम और जयादा मुखर होकर सामने आये हैं | विचारों का सम्प्रेषण और आगमन बस एक क्लिक के साथ पूरी दुनिया में हो जाता है |
                                                   ट्विटर  व फेसबुक के इस युग में कहने के लिए ढ़ेर सारी बातें हैं | मल्ल्लिका शेरावत के फिगर से लेकर बाबाओं के हाई वोल्टेज ड्रामा  और राज-समाज के कई अंदरूनी बातों तक के बारे में हमारे पास कमेंट्स हैं | बस बात नहीं है, तो खुद से करने को, समय नहीं है तो अपने अंदर निरंतर बहने वाली मौन की कल- कल  धारा के संगीत को सुनने का , दृष्टि नहीं है तो रजनीगंधा की कलियों को खिलते देखने का , सरोकार नहीं है तो उस अनाथ बुढ़िया से , जो पहले रोज गली में दिख जाती थी , पर अब कई दिनों से गायब है |
तेजी से विस्तृत होते सांसारिक फलक पर मनुष्य और उसके 'स्व' का रिश्ता बिन्दुगत होता जा रहा है | नतीजतन अवसाद , सेक्लुजन चुपके - चुपके हमारे सामुदायिक और व्यक्तिगत जीवन में घर करते जा रहें | दुर्भाग्य से जिन्दगी जीने के होड़ में हम जिन्दगी को ही भूलते जा रहे हैं |
                                                              इस अवसाद से बचने के लिए जरुरी है, अपने 'इनरबुक' पर अकाउंट खोलने और उसके रेगुलर अपढेसन की | हम अपने से भी बातें कर सकते हैं | मन हमारी बातों को सुनता है और हमारी समझ के आईने पर जमे गर्द को झाड़ता भी है |वह हमारे आत्मकेंद्रित होते जा रहे विचारों को पिघलाता  भी है | मन हमें समझाता है की हम वास्तव में क्या चाहते हैं , हमारे मनवांछित लक्ष्य के मार्ग में कोई रुकावट है तो उसकी काट क्या है? हम क्यों अटके पड़ें हैं| रौशनी का अंधकार इतना गहन क्यों है?
मौन की धारा के साथ बहते जाईये , सुनाई देगी गुलाबी हवाओं की थपक, चिड़ियों की चहक , दिखाई देंगी शाम की आभा सिंदूरी, बादलों की पकड़ा-पकड़ी और महसूस होगा ..... हाँ मैं हूँ .... यहीं हूँ , पूरी कायनात के संग मेरा सरोकार है | मैं विचारशील व सामाजिक प्राणी हूँ ... क्योंकि मैं 'इन्सान'हूँ |