Tuesday, January 2, 2018

मुस्कान


विदा होकर डरी-सहमी सी वह सकुचाती लजाती हुई ससुराल के आंगन में कदम रख चुकी थी। भव्यता के साथ स्वागत हुआ नई बहु का। नई-नवेली दुल्हन को ले जाकर एक बड़े से कमरे में बैठा दिया गया। घर की सारी औरतें उसे घेरे बैठी थी। मुंहदिखाई की रस्म के साथ-साथ जान-पहचान भी हो रही थी। सहमी सी वह गठरी बनी बैठी थी। वहीं कोने में दुल्हन की बूढ़ी ननियासास जो आगे से थोड़ी झुक गयी थी, बैठी बड़े गौर से दुल्हन को निहारे जा रही थी। उन्हें थोड़ा कम दिखाई देता था। बगल में ही बैठी मामीजी की नजर उन पर पड़ी तो चुटकी लेती हुई बोली, "का बात है अम्मा, ऐसे टुकुर-टुकुर का देखत हो बहुरिया के?"
नानीजी ने भी बड़ी शरारत भरे अंदाज में जवाब दिया, "देखत हिये कि ऐसन का है इ बहुरिया में जेके खातिर हमार नातिन हमका के छोड़ ऐकला बियाह लायील। सौत कहीं की..। सौत शब्द पर उन्होंने बिना दांतों वाले मुंह से ऐसा मुंह बनाया कि पूरा कमरा ठहाकों से गूंज गया और गठरी बनी दुल्हन शर्म से पानी-पानी हो गई।उसके मन का डर अब हल्की मुस्कान बन चुकी थी।
                                                                                           ---- वंदना रानी 

उसने कहा था 


राजीव चौक में हुडा सिटी सेंटर जाने वाली मेट्रो में अचानक सालों बाद निशि मिली, बिल्कुल आमने सामने। सार्थक को निशि को पहचानने में पल भर भी न लगे। निशि, सार्थक का पहला व अंतिम प्यार जिसे वह कई सालों से ढूंढ रहा था, उसके सामने थी। सार्थक ने उसे टोकना चाहा ही कि उसे निशि से अंतिम मुलाकात याद आयी और उसका भयभीत चेहरा भी। "सार्थक यदि हमने एक क्षण भी सच्ची मुहब्बत की हो तो मुझसे कभी मिलने की कोशिश न करना,कभी बात मत करना।" सार्थक उस क्षण में बंध कर रह गया। निशि केंद्रीय सचिवालय उतर गई।