Tuesday, April 17, 2012

लिखते -लिखते

आज कुछ लिखने का मन हो रहा है | किस विषय पर लिखूं ! एक व्यक्ति में छुपी असीम संभावनाओं पर या उसकी क्षुद्रता पर....| कृत्रिमता के आत्केंद्रित रवैये पर या फिर प्रकृति की विराट सृजनात्मकता पर....| कोलाहल के बीच कोने पर टंगी ख़ामोशी और 'आत्म-पहचान' की तलाश में भटकती जिन्दगी के साथ-साथ अपने अंदर दफ़न शर्म और पछतावे भी कलम उठाते ही अपना -अपना हिसाब मांगने लगते हैं| सदियों की सिसकियाँ मौन के दरवाजे पर दस्तक देने लगती हैं | शायद इन्ही सिसकियों को चेखव, स्त्रिन्बर्ग , ज्योतिबा फूले, प्रेमचंद , गाँधी, मुक्तिबोध, या निर्मल वर्मा जैसे पीड़ित आत्माओं ने अपनी-अपनी तन्हाइयों में सुना होगा ? किसकी पुकार सुन सिद्धार्थ ने घर त्याग दिया था ? गिलगमेश और प्रोमेथियश ने क्यों खुद को दू:खों के भट्टी में झौंक दिया ?सदियों से धर्म और कुलीनता के नाम पर मानवीय सभ्यता ने जो त्रासदियाँ झेली हैं ....उनकी रुदन का हिसाब कौन और कब तक चुकता करेगा ?

2 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

jo bhi likha hai...vicharniy hai....

Sujit Sinha said...

thax madam . meri chhoti si rachna ne aapka dhyan keencha.ye mere liye ek bari uplabdhi hai. thanx agai, pls, visit this blog regularly and drop ur advice.