Tuesday, January 2, 2018

उसने कहा था 


राजीव चौक में हुडा सिटी सेंटर जाने वाली मेट्रो में अचानक सालों बाद निशि मिली, बिल्कुल आमने सामने। सार्थक को निशि को पहचानने में पल भर भी न लगे। निशि, सार्थक का पहला व अंतिम प्यार जिसे वह कई सालों से ढूंढ रहा था, उसके सामने थी। सार्थक ने उसे टोकना चाहा ही कि उसे निशि से अंतिम मुलाकात याद आयी और उसका भयभीत चेहरा भी। "सार्थक यदि हमने एक क्षण भी सच्ची मुहब्बत की हो तो मुझसे कभी मिलने की कोशिश न करना,कभी बात मत करना।" सार्थक उस क्षण में बंध कर रह गया। निशि केंद्रीय सचिवालय उतर गई।

3 comments:

onewaytoconnect said...

pyar ka matlab sirf pana nahi hota hai

BEROjagaranupam said...

प्रेम एक विशिष्ट अवधारणा है। प्रेम को वही समझ सकता है, जिसने प्रेम किया हो। कहते हैं न 'प्रेम न हाट बिकाय' और 'गूंगा केरी सरकरा मन ही मन मुसकाय। सार्थक को निशि को टोकना चाइये था या नहीं समझना मुश्किल है।

Premji said...

Pyar to ek samandar hai, isme dub jana, fanna ho jana lakshaya hota hai na ki paar jana. Sarthak ne wahi kiya jo sachcha premi karta. Hats off to sarthak.